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मिमा॑तु॒ द्यौरदि॑तिर्वी॒तये॑ नः॒ सं दानु॑चित्रा उ॒षसो॑ यतन्ताम्। आचु॑च्यवुर्दि॒व्यं कोश॑मे॒त ऋषे॑ रु॒द्रस्य॑ म॒रुतो॑ गृणा॒नाः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mimātu dyaur aditir vītaye naḥ saṁ dānucitrā uṣaso yatantām | ācucyavur divyaṁ kośam eta ṛṣe rudrasya maruto gṛṇānāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मिमा॑तु। द्यौः। अदि॑तिः। वी॒तये॑। नः॒। सम्। दानु॑ऽचित्राः। उ॒षसः॑। य॒त॒न्ता॒म्। आ। अ॒चु॒च्य॒वुः॒। दि॒व्यम्। कोश॑म्। ए॒ते। ऋषे॑। रु॒द्रस्य॑। म॒रुतः॑। गृ॒णा॒नाः ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:59» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:8 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋषे) विद्या के देनेवाले ! जैसे (अदितिः) माता वा (द्यौः) प्रकाश के सदृश (वीतये) विज्ञान आदि की प्राप्ति के लिये (नः) हम लोगों का (मिमातु) आदर करे, वैसे आप आदर करिये जैसे (दानुचित्राः) अद्भुत दान जिनमें ऐसी (उषसः) प्रातर्वेलायें व्यवहारों को सिद्ध कराती हैं वा जैसे (एते) ये (रुद्रस्य) अन्यायकारियों को रुलानेवाले (दिव्यम्) कामना में श्रेष्ठ (कोशम्) धन के स्थान को (आ, अचुच्यवुः) प्राप्त होवें वैसे (गृणानाः) स्तुति करते हुए (मरुतः) मनुष्य (सम्) उत्तम प्रकार (यतन्ताम्) प्रयत्न करें ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो जन बिजुली, प्रातःकाल और ऋषि के सदृश धन के कोश को इकट्ठा करते हैं, वे प्रतिष्ठित होते हैं ॥८॥ इस सूक्त में पवन और बिजुली के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनसठवाँ सूक्त और चौबीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे ऋषे ! यथाऽदितिर्द्यौर्वीतये नो मिमातु तथा त्वमस्मान् मिमीहि। यथा दानुचित्रा उषसो व्यवहारान् निर्म्मापयन्ति यथैत रुद्रस्य दिव्यं कोशमाचुच्यवुस्तथा गृणाना मरुतः सं यतन्ताम् ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मिमातु) (द्यौः) प्रकाश इव (अदितिः) मातेव (वीतये) विज्ञानादिप्राप्तये (नः) अस्मान् (सम्) सम्यक् (दानुचित्राः) चित्रा अद्भुता दानवो दानानि यासु ताः (उषसः) प्रभातवेलाः (यतन्ताम्) (आ, अचुच्यवुः) आगच्छन्तु (दिव्यम्) दिवि कामनायां साधुम् (कोशम्) धनालयम् (एते) (ऋषे) विद्याप्रद (रुद्रस्य) अन्यायकारिणो रोदयितुः (मरुतः) मनुष्याः (गृणानाः) स्तुवन्तः ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। वे विद्युद्वदुषर्वदृषिवद्धनकोशं सञ्चिन्वन्ति ते प्रतिष्ठिता भवन्ति ॥८॥ अत्र वायुविद्युद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनषष्टितमं सूक्तं चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक विद्युत, उषा व ऋषी यांच्याप्रमाणे (प्रकाश, व्यवहार, ज्ञान) धनाचा कोश संग्रहित करतात ते प्रतिष्ठित होतात. ॥ ८ ॥